वायु-प्रदूषण भारत मृत्यु दर: 2022 में 17.2 लाख मौतें, रिपोर्ट में खुलासा
Date of Publication: 31 October 2025
परिचय
नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वायु-प्रदूषण भारत मृत्यु दर अत्यंत गंभीर स्तर पर पहुंच चुकी है। 2022 में भारत में लगभग 1.72 मिलियन लोग वायु-प्रदूषण से सीधे जुड़ी घटनाओं में मारे गए, जो “वायु-प्रदूषण भारत मृत्यु दर” की संज्ञा से चर्चा में है।
यह आंकड़ा 2010 की तुलना में लगभग 38 % अधिक है और स्वास्थ्य-विज्ञानियों तथा पर्यावरण-विश्लेषकों के लिए गहरी चिंता का विषय बन गया है।
पृष्ठभूमि
रिपोर्ट का स्रोत और संदर्भ
इस आंकड़े का आधार Lancet Countdown on Health and Climate Change की 2025 की ग्लोबल रिपोर्ट है, जो World Health Organization (WHO) और University College London द्वारा तैयार की गई है।
रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि मानव-सक्रियता द्वारा उत्सर्जित PM2.5 नामक सूक्ष्म कणों (fine-particulate matter) के कारण स्वास्थ्य-हानि और मृत्यु दर बढ़ रही है।
“वायु-प्रदूषण भारत मृत्यु दर” की प्रवृत्ति
रिपोर्ट बताती है कि भारत में वायु-प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या 2022 में लगभग 17.2 लाख रही, यह संख्या 2010 की तुलना में 38 % अधिक है।
इसके पीछे मुख्य रूप से कोयला-आधारित ऊर्जा उत्पादन, वाहन उत्सर्जन और घरेलू कच्चे-ईंधन (solid fuels) का उपयोग प्रमुख कारण हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत की कुल वैश्विक वायु-प्रदूषण-मृत्यु दर में हिस्सेदारी लगभग 26 % है।
विश्लेषण
स्रोत एवं कारण
“वायु-प्रदूषण भारत मृत्यु दर” को बढ़ाने वाले मुख्य स्रोतों में कोयला आधारित विद्युत संयंत्र, पेट्रोल एवं डीजल वाहन, तथा घरेलू रसोई में लकड़ी-गोबर-खाद-ईंधन का व्यापक उपयोग शामिल हैं।
रिपोर्ट अनुसार, केवल कोयले से संबंधित मौतों की संख्या अकेले लगभग 3 लाख 94 हजार थी।
घरेलू वायु-प्रदूषण (household air pollution) ने ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 1,00,000 आबादी में 125 मौतों का दर दर्ज की है।
इसके अतिरिक्त, आर्थिक दृष्टि से यह बोझ भारी है: 2022 में वायु-प्रदूषण-कारण मृत्यु-पूर्वकालीन लागत अनुमानित USD 339.4 बिलियन (लगभग 9.5 % GDP) रही।
स्वास्थ्य-परिणाम और सामाजिक प्रभाव
सूक्ष्म कण PM2.5 फेफड़ों और हृदय-रक्तवाहिकाओं में प्रभाव डालते हैं, जिससे क्रॉनिक रेस्पिरेटरी रोग, अस्थमा, हृदयाघात और समय-पूर्व मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है।
विशेष रूप से बच्चे, वृद्ध और पहले से स्वास्थ्य-संक्रमित व्यक्ति अधिक संवेदनशील हैं।
इसके अलावा, वायु-प्रदूषण के चलते श्रम-घंटों में कमी आई है और किसानों तथा बाह्य-मज़दूरों की उत्पादकता प्रभावित हुई है, जिससे सामाजिक व आर्थिक-असर भी गहरे हैं।
चुनौतियाँ और नीति-विचार
भारत की ऊर्जा-प्रणाली आज भी मुख्यतः जीवाश्म-ईंधन पर आधारित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 में भारत की लो-कार्बन-प्रस्तुति तैयारियों में 2 % की गिरावट आ चुकी है।
राज्य-स्तर पर वायु-गुणवत्ता नियंत्रण, प्रदूषण-मानकों का सख्त पालन व स्वच्छ-ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है।
वहीं, संसाधन-निगरानी, डेटा-संग्रह तथा ग्रामीण वाशिंगयूमेन सुधार भी अहम चुनौतियाँ हैं।
प्रतिक्रियाएँ
सरकार एवं नियामक机构 की प्रतिक्रिया
वित्त एवं पर्यावरण मंत्रालय ने रिपोर्ट पर गौर किया है और वायु-गुणवत्ता सुधार योजनाओं को तेज़ करने का संकेत दिया है।
लेकिन आलोचकों का यह कहना है कि आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं तथा वास्तविक समय-निगरानी की कमी अभी भी बनी हुई है।
विशेषज्ञों व एनजीओ की राय
स्वास्थ्य व पर्यावरण विशेषज्ञों ने “वायु-प्रदूषण भारत मृत्यु दर” को एक सार्वजनिक-स्वास्थ्य आपात-स्थिति माना है। उन्होंने कहा है कि इसे सिर्फ पर्यावरणीय समस्या नहीं बल्कि एक सामाजिक-न्याय (social justice) समस्या के रूप में देखने की आवश्यकता है।
एनजीओ व शोध संस्थानों ने कहा है कि यदि तत्काल कदम नहीं उठाये गए तो इस समस्या का मानव-और-राजनीतिक-दायरा बहुत बढ़ जाएगा।
आम जनता व मीडिया की चिंता
मीडिया-रिपोर्टिंग में यह विषय गरमाया हुआ है। शहरों में बढ़ती प्रदूषण-लहरों, रोग-बढ़त और चिकित्सा-बोझ के अनुभव से आम जनता भी चिंित है।
शहरी-रोल मॉडल द्वारा प्रदूषण-घंटों में की जा रही गिरावट पर कुछ सकारात्मक संकेत भी मिल रहे हैं लेकिन ग्रामीण व पिछड़े इलाकों का संकट अब भी दूर नहीं हुआ है।
निष्कर्ष
“वायु-प्रदूषण भारत मृत्यु दर” इस रिपोर्ट के माध्यम से सामने आया है कि भारत में वर्ष 2022 में वायु-प्रदूषण से लगभग 17.2 लाख लोगों की मौत हुई — जो स्वास्थ्य, पर्यावरण और आर्थिक दृष्टि से एक बड़ी चेतावनी है।
जहाँ एक ओर यह आंकड़ा हमें रोक-थाम व सुधार के लिए प्रेरित करता है, वहीं दूसरी ओर यह बताता है कि समय-सीमा में दिए गए लक्ष्यों को प्राप्त करना आसान नहीं होगा।
अगर भारत अपनी ऊर्जा-प्रणाली, प्रदूषण-नियंत्रण उपाय और सार्वजनिक-स्वास्थ्य संरचना को समय रहते सुदृढ़ नहीं करता, तो यह संख्या भविष्य में और बढ़ने की संभावना रखती है।
साथ ही, इस प्रकार की समस्या लड़ने में सरकारी-नीति, निजी-क्षेत्र और नागरिक-सक्रियता का संयोजन अनिवार्य है।
उम्मीद है कि इस रिपोर्ट के प्रकाश में नीति-निर्माताओं, उद्योगों व आम नागरिकों द्वारा मिल-जुल कर काम किया जाएगा ताकि वायु-प्रदूषण के रामबाण समाधान की ओर कदम बढ़ सके।
Author: Ravi Parashar
Ravi Parashar is a digital news writer covering day-to-day updates, trends, and real-time developments with accuracy and journalistic integrity.